शब्दों से इधर
खासी दोस्ती हो चली है
कि प्यार की
एक नज़र पड़ते ही
कुर्बान हो जाते हैं।
बात ही बात में
अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ ,
अपनी यात्रा के
सत्यों-अर्धसत्यों को लिए
इतनी सहजता से
मेरे जेहन में उतर जाते हैं
कि हर शब्द मुझे एक कहानी-सा
लगने लगता है।
यकायक मैं बहुत छोटी हो जाती हूॅं
अपनी सीमाओं में
उस विराट के पदचिन्ह तलाशते हुए
उसी में खो जाती हूॅं,
अपने विलय के आनंद में
डूबते-उतराते हुए
न जाने कैसे
मैं स्वयं
उस कहानी का हिस्सा बन जाती हूॅं।
इसतरह
हर रोज एक कहानी
बनती हूॅं,
डूबती हूॅं,
विलय होती हूॅं,
और किनारे पर लौटती हूॅं।
मेरी इस दैनंदिन यात्रा के साक्षी हैं
मेरे ये शब्द-मित्र।
यही जल,
यही नाव,
यही पतवार,
यही मल्लाह,
यही यात्री भी
और इन्हीं का अवगाहन
इन्हीं की साक्षी।