एक दिन

एक दिन
घुल जाऊँगी मैं
इन हवाओं में
तब बह चलूंँगी
उन्मुक्त, निर्बंध
इस शाख से उस शाख
इस दिशा से उस दिशा।
तब तुम बहना मेरे साथ
अगर बह पाओ।
एक दिन मैं
जज्ब हो जाऊंँगी
इस मिट्टी में
अपनी सारी संवेदना के साथ,
तब महसूस करना मुझे
अगर कर पाओ।
एक दिन ये पेड़
मुझे समेट लेंगे
अपने भीतर
तब स्पर्श करना मुझे
अगर कर पाओ।
एक दिन
सूरज के तेज और
चाँदनी की शीतलता में
खो जाऊँगी मैं,
तब तलाश करना मुझे
अगर कर पाओ।
एक दिन ये संपूर्ण सृष्टि
गवाही देगी मेरे वजूद की
तब ढूँढ लेना
अपने सभी सवालों के जवाब
अगर ढूँढ पाओ।
और सुनो,
उस पल की
बेसब्र प्रतीक्षा में हूँ मैं
जब शून्य में होगी मुलाकात
अगर तुम कर पाओ।