ज़िन्दगी

जब-जब
सिर झुकाया मैंने,
वह रौंदती चली गयी।
जब-जब
आँखों में आँखें डालकर देखा उसे
वह पिघलती चली गयी।
जब-जब खिलखिलाई मैं
वह खिलती चली गयी।
जब-जब आँसुओं में डूबी मैं
वह भीगती चली गयी।
जब-जब बरसाए अँगारे मैंने
वह तपती चली गयी।
सच,
हमारे शफ़्फ़ाफ़ दिल का
एक पाकीज़ा अक्स ही तो है
ये ज़िन्दगी!!!