चलो न आज कुछ इस तरह जी लें

चलो, आज कुछ इस तरह जी लें
कि संभावनाओं को हकीकत में बदलें,
चेतना के तार झनझनाऍं,
सारे सपनों को ज़मीन पर उतार लें,
नई राहें तलाश लें,
अपनी एक ऐसी नई दुनिया बनाऍं
कि जिसके ओर छोर अनंत तक फैल जाएँ
सीमित हम सीमाहीन हो जाऍं।
चलो न, आज कुछ इस तरह जी लें,
खो लें,
डूब लें, डुबो लें,
सबमें लय होकर
एक हो जाऍं।
चलो न आज कुछ इस तरह जी लें
कि ज़िंदगी खुशरंग हो जाए!!!

वक्त की फितरत

बहुत छोटे छोटे पलों से मिलकर बनता है वक्त।
वक्त कभी थमता नहीं क्योंकि थमना, रुकना उसे आता नहीं, ये उसकी फितरत में नहीं। उसे तो बस बहना आता है और वह हर पल को पार कर दूसरे पल की ओर बस बहता है, बहता है बस बहता ही है। वक्त लौटना और मुड़ना भी नहीं जानता, वह बस आगे बढ़ना जानता है।स्थितियां अच्छी हों या बुरी, वो उनसे बेखबर बस आगे बढ़ता है क्योंकि वो ये जरूर जानता है कि स्थितियां हर क्षण बदलती हैं,तो फिर उनके बारे में सोचकर समय और ऊर्जा व्यर्थ क्यों गंवाई जाए?
हमें भी आगे बढ़ना है तो वक्त के साथ चलना होगा। वक्त की फितरत को अपनी फितरत बना लेना होगा।आज हम प्रश्न भले ही हों, कल दुनियां के लिए जवाब जरूर होंगे, एक ऐसा जवाब  जो  सारी दुनिया  पाना चाहेगी।
तो क्यों न हम भी वक्त की तरह बन जाएं, उसकी तरह सिर्फ आगे बढ़ना सीख लें।

अनकहे लम्हे

कुछ अनकहे लम्हे हैं मेरे पास,
जिनके बोझ से धड़कता है दिल,
पिराती है छाती।
सोचती  हूॅं
उन्हें कपड़ों की अलमारी में रख
हल्की हो लूॅं
पर ज्यों ही अलमारी में रखती हूॅं
सारे कपड़े कूद पड़ते हैं बाहर।
यहॉं – वहॉं  कपड़ों का
ढेर-सा लग जाता है।
फिर सोचती हूॅं
किताबों के बीच छिपा दूॅं उन्हें
कि चीख पड़ती हैं किताबें।
सिरहाने रखती हूॅं
तो तकिया सीना तानकर
खड़ा हो जाता है सामने।
थक-हारकर
फिर से सीने में दफ़न कर लेती हूॅं
कि इसे तो आदत है
बोझ उठाने की,
सच दबाने की,
और सब कुछ
चुपचाप सह जाने की।

साक्षी हैं शब्द

सुनो,
इन शब्दों को
तैरने दो फिजाओं में,
दौड़ने दो गीली रेत पर।
ये साक्षी हैं
मेरी यात्रा के।
इन्हें भी
अपनी यात्रा तय कर लेने दो
कि एक दिन
इनके कदमों के निशान
ख़ुद बयां करेंगे मेरी दास्तां !!!
                            
                                ऋता…

साक्षी हैं शब्द-मित्र

शब्दों से इधर
खासी दोस्ती हो चली है
कि प्यार की
एक नज़र पड़ते ही
कुर्बान हो जाते हैं।
बात ही बात में
अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ ,
अपनी यात्रा के
सत्यों-अर्धसत्यों को लिए
इतनी सहजता से
मेरे जेहन में उतर जाते हैं
कि हर शब्द मुझे एक कहानी-सा
लगने लगता है।
यकायक मैं बहुत छोटी हो जाती हूॅं
अपनी सीमाओं में
उस विराट के पदचिन्ह तलाशते हुए
उसी में खो जाती हूॅं,
अपने विलय के आनंद में
डूबते-उतराते हुए
न जाने कैसे
मैं स्वयं
उस कहानी का हिस्सा बन जाती हूॅं।
इसतरह
हर रोज एक कहानी
बनती हूॅं,
डूबती हूॅं,
विलय होती हूॅं,
और किनारे पर लौटती हूॅं।
मेरी इस दैनंदिन यात्रा के साक्षी हैं
मेरे ये शब्द-मित्र।
यही जल,
यही नाव,
यही पतवार,
यही मल्लाह,
यही यात्री भी
और इन्हीं का अवगाहन
इन्हीं की साक्षी।



चलो न लौट चलते हैं…

चलो न लौट चलते हैं
एक बार फिर
वहीं
उसी हरसिंगार तले।
उसके पतले से तने से सटकर
झरते फूलों की मादक,
भीनी-सी गंध में डूब कर
उन खोए हुए लम्हों को
फिर से ढूॅंढते हैं।
ढूॅंढ लाते हैं
वो नोंक-झोंक,
वो मीठी-सी तकरार,
वो बेवजह खिलखिलाना,
वो सब कुछ
जिसमें छिपी है
वो मुस्कुराहट,
जिसमें जीवन-संगीत था।
चलो न लौट चलते हैं
वहीं उसी हरसिंगार तले!!!
‌‌ऋता…

चलो न लौट चलते हैं… चलो न लौट चलते हैंएक बार फिरवहीं उसी हरसिंगार तले।उसके पतले से तने से सटकरझरते फूलों की मादक,भीनी-सी गंध में डूब करउन खोए हुए लम्हों कोफिर से ढूॅंढते हैं।ढूॅंढ लाते हैंवो नोंक-झोंक,वो मीठी-सी तकरार,वो बेवजह खिलखिलाना,वो सब कुछजिसमें छिपी हैवो मुस्कुराहट,जिसमें जीवन-संगीत था।चलो न लौट चलते हैंवहीं उसी हरसिंगार तले!!! ‌‌ऋता…

About

मेरे भीतर
एक कविता
करवट लेती रही है रातभर।
भाव-गंगा में स्नात
वह तपस्विनी
वस्त्रों की तलाश में
बहुत छटपटाई है रातभर।
उसकी पीड़ा को भोगते हुए
मैं भी जागती रही हूँ रातभर।
भोर की पहली किरण के साथ
वह
निराभरण,
अनलंकृता,
श्वेत-वसना,
अकस्मात मेरे निकट आकर
कुछ यूँ -सी बैठ गयी है
कि जैसे कोई बंद कली
तपाक से खिल जाए ओसभर
या किसी निर्जन एकांत में
कोई कोयल अचानक कूक उठे
वाणी में वसंत भर!!!

बात

बात में बड़ा दम होता है।

जी हाॅं, बात में बड़ा दम होता है।

कभी बात ही बात में
प्रेम-डोर जुड़ जाती है
तो कभी छोटी-सी बात पर
बस ठन ही जाती है।

कभी ‘वाह क्या बात है’
कहकर तालियों के साथ
ठहाके गूँज जाते हैं

तो कभी कोई बात
तीर की तरह निकलकर
सीना छलनी कर जाती है।

याद है आपको?

वो बात ही तो थी,

जो महाभारत की नींव में

बैठी कुटिलता से मुस्कुरा रही थी।

ऐहतियात से बरतिए साहब!

ये बात
किसी बम से कम नहीं।