साक्षी हैं शब्द

सुनो,
इन शब्दों को
तैरने दो फिजाओं में,
दौड़ने दो गीली रेत पर।
ये साक्षी हैं
मेरी यात्रा के।
इन्हें भी
अपनी यात्रा तय कर लेने दो
कि एक दिन
इनके कदमों के निशान
ख़ुद बयां करेंगे मेरी दास्तां !!!
                            
                                ऋता…

साक्षी हैं शब्द-मित्र

शब्दों से इधर
खासी दोस्ती हो चली है
कि प्यार की
एक नज़र पड़ते ही
कुर्बान हो जाते हैं।
बात ही बात में
अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ ,
अपनी यात्रा के
सत्यों-अर्धसत्यों को लिए
इतनी सहजता से
मेरे जेहन में उतर जाते हैं
कि हर शब्द मुझे एक कहानी-सा
लगने लगता है।
यकायक मैं बहुत छोटी हो जाती हूॅं
अपनी सीमाओं में
उस विराट के पदचिन्ह तलाशते हुए
उसी में खो जाती हूॅं,
अपने विलय के आनंद में
डूबते-उतराते हुए
न जाने कैसे
मैं स्वयं
उस कहानी का हिस्सा बन जाती हूॅं।
इसतरह
हर रोज एक कहानी
बनती हूॅं,
डूबती हूॅं,
विलय होती हूॅं,
और किनारे पर लौटती हूॅं।
मेरी इस दैनंदिन यात्रा के साक्षी हैं
मेरे ये शब्द-मित्र।
यही जल,
यही नाव,
यही पतवार,
यही मल्लाह,
यही यात्री भी
और इन्हीं का अवगाहन
इन्हीं की साक्षी।



चलो न लौट चलते हैं…

चलो न लौट चलते हैं
एक बार फिर
वहीं
उसी हरसिंगार तले।
उसके पतले से तने से सटकर
झरते फूलों की मादक,
भीनी-सी गंध में डूब कर
उन खोए हुए लम्हों को
फिर से ढूॅंढते हैं।
ढूॅंढ लाते हैं
वो नोंक-झोंक,
वो मीठी-सी तकरार,
वो बेवजह खिलखिलाना,
वो सब कुछ
जिसमें छिपी है
वो मुस्कुराहट,
जिसमें जीवन-संगीत था।
चलो न लौट चलते हैं
वहीं उसी हरसिंगार तले!!!
‌‌ऋता…

चलो न लौट चलते हैं… चलो न लौट चलते हैंएक बार फिरवहीं उसी हरसिंगार तले।उसके पतले से तने से सटकरझरते फूलों की मादक,भीनी-सी गंध में डूब करउन खोए हुए लम्हों कोफिर से ढूॅंढते हैं।ढूॅंढ लाते हैंवो नोंक-झोंक,वो मीठी-सी तकरार,वो बेवजह खिलखिलाना,वो सब कुछजिसमें छिपी हैवो मुस्कुराहट,जिसमें जीवन-संगीत था।चलो न लौट चलते हैंवहीं उसी हरसिंगार तले!!! ‌‌ऋता…

About

मेरे भीतर
एक कविता
करवट लेती रही है रातभर।
भाव-गंगा में स्नात
वह तपस्विनी
वस्त्रों की तलाश में
बहुत छटपटाई है रातभर।
उसकी पीड़ा को भोगते हुए
मैं भी जागती रही हूँ रातभर।
भोर की पहली किरण के साथ
वह
निराभरण,
अनलंकृता,
श्वेत-वसना,
अकस्मात मेरे निकट आकर
कुछ यूँ -सी बैठ गयी है
कि जैसे कोई बंद कली
तपाक से खिल जाए ओसभर
या किसी निर्जन एकांत में
कोई कोयल अचानक कूक उठे
वाणी में वसंत भर!!!