युवा पीढ़ी के नाम

युवा पीढ़ी के नाम हैं ये पंक्तियाँ……..

आँखों में आँज लो
इंद्रधनुषी सपने।
रोम-रोम में भरलो
उन्हें पूरा करने की ज़िद और जुनून।
मन में करलो
कभी न हारने का संकल्प।
कदमों में भर लो उड़ने की गति।
हाथों में पैदा करलो
मेहनत की ताकत
चेतना में जला लो
संघर्ष की आग
और….और फिर
खुले आसमान में
भरलो उड़ान
तय है कि जीत लोगे जहान।।।

सड़क का सवाल

सड़क ने यकायक करवट ली,
चौंककर चारों ओर नज़र दौड़ाई,
दूर-दूर तक कोई नहीं था
फिर पास ही पसरी धूप से पूछा-‘
‘सुनो, सब लोग कहीं गए हैं क्या?’
धूप ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा
और अनमनी-सी पसरी रही सड़क पर।
सड़क ने फिर फुटपाथ के पत्थरों से पूछा
पर वे भी आसमान की ओर टकटकी लगाए देखते रहे
कुछ न बोले।
सड़क ने फिर वृक्ष की जड़ों,शाखाओं, पत्तियों से
हवाओं से, मिट्टी से,पानी से
वही एक सवाल दोहराया
पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
बस प्रतिक्रिया में
जड़ें इंठ गयीं,
शाखाएँ लटक गयीं,
पत्तियाँ झरने लगीं,
हवा गर्माने लगी,
मिट्टी की आँखें सूख गईं
पानी क्वारंटाइन में चला गया
और सड़क का अपना सवाल
उसके लिए एक पहेली बन गया।

कभी-कभी

कभी-कभी
एक पत्ती
चमक उठती है
घने अंधकार में।
कभी-कभी
कोई किरण
चटखा देती है,मन में
एक साथ कई कलियाँ
गुलाब की ।
भर जाती है
गंध घर-आँगन।
कभी-कभी
एक पेड़
हो उठता है
एकाएक तेजस
और बन जाता है
गौतम बुद्ध।

माँ

आज भी हर रोज़ तेरी आहट सुनती हूँ माँ
आज भी हर पल तेरी आवाज़ सुनने को तरसती हूँ माँ,
पर न तू आती है,न तेरी आवाज़ बहलाती है,
इस आग के दरिया-सी ज़िन्दगी में
तू जो ग़र मेरे पास होती तो
तेरी गोद में सर रख कर थोड़ा रो लेती,
थोड़ा सुकून से जी लेती।
कभी सपनोँ में आना,
मेरे सिरहाने बैठ कर मुझसे
घंटों बतियाना,सिर सहलाना मेरा
मेरे माथे पर अपने नेह की थपकी देना,
बहुत दिन हुए माँ !
कभी सपने में ही सही
मेरी दुनिया को ज़न्नत बना जाना !!!

कितनी अग्निशालाएँ

कितनी अग्निशालाएँ
यहाँ,वहाँ
दूर-दूर तक।
बेबसी-लाचारी,
बेरोजगारी,
भुखमरी
और और…
मौत का नंगा नाच।
निस्तब्धता बाहर
भीतर कोलाहल।
क्या सोचते हो तुम?
डर जाएँगे हम?
नहीं,बिल्कुल नहीं,
कोई सवाल नहीं करेंगे,
न कोई शिकवा,
न शिकायत करेंगे,
न ज़िन्दगी की भीख ही मांगेंगे।
और देखना तुम
इस अग्निपरीक्षा से भी
मुस्कुराते हुए ही निकलेंगे हम।
ये भारत-भूमि है श्रीमान!
यहाँ बच्चे
कालकूट पीकर ही जन्म लेते हैं।
यहाँ अग्निपरीक्षाएँ
पार करने का हुनर
संस्कारों में
घुलकर मिलता है।
यहाँ सीता को अग्निपरीक्षा
पार करनी पड़ती है
और प्रह्लाद
प्रज्वलित, भीषण अग्नि से
सकुशल बाहर निकलता है
क्योंकि
यहाँ सत्य बारबार
कसौटी पर कसा जाता है,
आस्था तलवार की धार पर चलकर
परवान चढ़ती है।
देखना तुम,
ये जंग भी जीत लेंगे हम,
हाँ,हाँ, जीत लेंगे हम।