कभी-कभी

कभी-कभी
एक पत्ती
चमक उठती है
घने अंधकार में।
कभी-कभी
कोई किरण
चटखा देती है,मन में
एक साथ कई कलियाँ
गुलाब की ।
भर जाती है
गंध घर-आँगन।
कभी-कभी
एक पेड़
हो उठता है
एकाएक तेजस
और बन जाता है
गौतम बुद्ध।

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