कितनी अग्निशालाएँ

कितनी अग्निशालाएँ
यहाँ,वहाँ
दूर-दूर तक।
बेबसी-लाचारी,
बेरोजगारी,
भुखमरी
और और…
मौत का नंगा नाच।
निस्तब्धता बाहर
भीतर कोलाहल।
क्या सोचते हो तुम?
डर जाएँगे हम?
नहीं,बिल्कुल नहीं,
कोई सवाल नहीं करेंगे,
न कोई शिकवा,
न शिकायत करेंगे,
न ज़िन्दगी की भीख ही मांगेंगे।
और देखना तुम
इस अग्निपरीक्षा से भी
मुस्कुराते हुए ही निकलेंगे हम।
ये भारत-भूमि है श्रीमान!
यहाँ बच्चे
कालकूट पीकर ही जन्म लेते हैं।
यहाँ अग्निपरीक्षाएँ
पार करने का हुनर
संस्कारों में
घुलकर मिलता है।
यहाँ सीता को अग्निपरीक्षा
पार करनी पड़ती है
और प्रह्लाद
प्रज्वलित, भीषण अग्नि से
सकुशल बाहर निकलता है
क्योंकि
यहाँ सत्य बारबार
कसौटी पर कसा जाता है,
आस्था तलवार की धार पर चलकर
परवान चढ़ती है।
देखना तुम,
ये जंग भी जीत लेंगे हम,
हाँ,हाँ, जीत लेंगे हम।

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