क्या है ज़िन्दगी

सुनो,
क्या कभी तुमने सोचा है कि….
क्या है जिंदगी?
ज़िन्दगी के माने क्या हैं?
क्या होता है जिंदगी जीना?
क्या साँस लेना भर है जिंदगी?
या कि दाल-रोटी के जुगाड़ में
दिन-रात एक करना है जिंदगी?
लोगों से मिलना,
रिश्ते निभाना है जिंदगी?
अरे हाँ,
हो सकता है कि देश का विकास
ही ज़िन्दगी हो
या औद्योगीकरण,
ज्ञान-विज्ञान हो ज़िन्दगी?
अरे सुनो!
क्या प्यार ज़िन्दगी हो सकता है?
अरे.. रे ..रे…..
तुम तो खीझने लगे।
सुनो,
कम से कम
तुम तो समझो मेरी पीड़ा,
मेरी जिज्ञासा का सम्मान करो।
मुझे आज जान ही लेना है कि
क्या है ज़िन्दगी?
सुनो,
क्या हिमालय पर
मिल जाएगी ज़िंदगी
या कि सागर की गहराई में?
कोई तो जगह होगी ऐसी इस दुनिया में
जहाँ ज़िन्दगी को देखा जा सके,
समझा जा सके,
जीया जा सके?
अरे??
तुम हँस रहे हो?
‘प्रश्न ही ऐसे हैं तुम्हारे’
‘ हँसू नहीं तो और क्या करूं?’
‘ ज़िन्दगी क्या कोई बबूल का पेड़ है?
कि दिखा दूँ तुम्हें कि….
लो, देख लो, ये रही ज़िन्दगी।’
‘अरे, हर एक के लिए
मुख़्तलिफ़-सी होती है ज़िन्दगी ‘
‘एक खाली बोतल की तरह
होती है ज़िन्दगी
जितना भरा,
जैसा भरा,
जिस रंग का भरा
वैसी ही हो जाती है ज़िन्दगी।’
‘ज़िन्दगी न कोई वाद है,
न कोई सिद्धान्त
ये तो बस एक खाली कैनवास है
जैसा चाहो वैसा चित्र बना लो
विस्तृत या संकुचित
ये तुम जानो।’
‘अब तुम सोचो,
मैं तो चला।’
‘अरे रे कहाँ?
सुनो पर ‘
??????

Leave a comment